ताज ख़ान
नर्मदापुरम//
भारतीय पहचान और राष्ट्रवाद से जुड़े गहन विमर्श में,मौलाना अबुल कलाम आज़ाद के शब्द,विशेष रूप से उनकी यह प्रभावशाली घोषणा,स्थायी प्रासंगिकता के साथ गूंजती है:”प्रत्येक भारतीय,चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान,सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण,एक भारतीय है।”भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर दिया गया यह प्रभावशाली कथन, राजनीतिक बयान बाज़ी से ऊपर उठकर,एक बहुलवादी और सामंजस्यपूर्ण राष्ट्र के लिए एक बुनियादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है।
गहन इस्लामी अध्ययन के विद्वान।
स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रखर नेता और गहन इस्लामी अध्ययन के विद्वान,उन्होंने भारत का एक ऐसा दृष्टिकोण प्रस्तुत किया जहाँ धार्मिक पहचान,महत्वपूर्ण होते हुए भी,साझा भारतीय राष्ट्रवाद के सर्वव्यापी ध्वज के अंतर्गत समाहित थी।उन्होंने उस समय के अलगाववादी आख्यानों,विशेषकर द्वि-राष्ट्र सिद्धांत,का दृढ़ता से खंडन किया,जिसके बारे में उनका मानना था कि यह भारत की साझी संस्कृति के मूल ढांचे के लिए खतरा है।उन्होंने तर्क दिया कि सदियों के सह-अस्तित्व और साझा अनुभवों ने भारत में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक अटूट बंधन का निर्माण किया है,जिसने एक साझा भाषा, साहित्य,कला,परंपराओं और यहाँ तक कि दैनिक जीवन को भी आकार दिया है। उनका मानना था कि यह साझा विरासत ही भारतीय राष्ट्रवाद का सच्चा आधार है, जो संकीर्ण धार्मिक या सांस्कृतिक भेदभावों से कहीं आगे है।
हिंदू-मुस्लिम एकता में आज़ाद का विश्वास।
हिंदू-मुस्लिम एकता में आज़ाद का विश्वास कोई राजनीतिक स्वार्थ नहीं था, बल्कि इस्लाम की उनकी गहन धार्मिक समझ में गहराई से निहित था।उन्होंने इस्लाम की सार्वभौमिक भावना और इस्लाम के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट किया।धर्म (दीन) और कर्मकांडों व सामाजिक कानूनों(शरिया)में उसकी बाहरी अभिव्यक्तियाँ।उनके लिए,इस्लाम सहित सभी धर्मों का सार सार्वभौमिक सत्य,एकेश्वरवाद,न्याय, करुणा और धार्मिकता की खोज में निहित है।उनका मानना था कि ये मूल्य अंतर्धार्मिक सद्भाव की नींव रखते हैं।उन्होंने इस दृष्टिकोण को कुरान में ही प्रमाणित पाया,जहाँ उन्होंने इसकी आयतों की व्याख्या धार्मिक प्रथाओं की स्पष्ट विविधता के पीछे ईश्वरीय उद्देश्य की एकता पर ज़ोर देने के लिए की।
भारत के ऐतिहासिक विकास का स्वाभाविक परिणाम माना।
इस धार्मिक बहुलवाद ने आज़ाद को एक समावेशी भारतीय पहचान की वकालत करने में सक्षम बनाया,जहाँ लोग गर्व से अपनी धार्मिक मान्यताओं को अपना सकें और साथ ही खुद को भारतीय भी मान सकें।उन्होंने इसे भारत के ऐतिहासिक विकास का स्वाभाविक परिणाम माना, जहाँ विविध धार्मिक समुदायों ने एक-दूसरे की संस्कृतियों को समृद्ध किया और एक अद्वितीय समन्वयकारी सभ्यता में योगदान दिया।उनकी दृष्टि उन लोगों से बिल्कुल अलग थी जो भारतीय राष्ट्रवाद को संकीर्ण धार्मिक दृष्टिकोण से परिभाषित करना चाहते थे, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम।
भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में।
आज़ादी और दुखद विभाजन के बाद भी, जिसका उन्होंने कड़ा विरोध किया था,आज़ाद एक अखंड और धर्मनिरपेक्ष भारत के प्रति अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग रहे।भारत के पहले शिक्षा मंत्री के रूप में,उन्होंने देश की शिक्षा नीतियों पर गहरा प्रभाव डाला और प्रगति,बहुलवाद और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने के लिए डिज़ाइन की गई एक आधुनिक प्रणाली की नींव रखी।उन्होंने सार्वभौमिक शिक्षा,समान अवसर और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों का समर्थन किया और एक जागरूक और सहिष्णु नागरिक वर्ग के निर्माण में इनके महत्व को पहचाना। उन्होंने वैज्ञानिक और तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के साथ-साथ भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में शिक्षा की भूमिका पर ज़ोर दिया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और विभिन्न सांस्कृतिक अकादमियों जैसी संस्थाओं की स्थापना ने एक जीवंत और दूरदर्शी राष्ट्र के उनके दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित किया।
आज़ाद का संदेश आज भी प्रासंगिक है।
बढ़ते सांप्रदायिक तनाव और राष्ट्रवाद पर बहस के दौर में, एकता और विविधता के सम्मान का उनका आह्वान, एक बहुलवादी समाज के रूप में भारत की ताकत का मार्गदर्शक है।उनके विचारों से दोबारा जुड़ने से एक विविध राष्ट्र में पहचान की जटिलताओं से निपटने और भारत के स्वतंत्रता संग्राम की विशेषता रही एकता और सद्भाव की भावना को फिर से जगाने में मददगार सलाह मिल सकती है।उनकी विरासत इस विश्वास में अडिग है कि भारत का भविष्य धर्मनिरपेक्षता, समावेशिता और लोकतंत्र को कायम रखने में निहित है -जहाँ विविधता में एकता केवल एक नारा नहीं,बल्कि एक जीवंत वास्तविकता है।
अल्ताफ मीर,पीएचडी
जामिया मिल्लिया इस्लामिया।

