सौंसारखेड़ा में परंपरा और आस्था के साथ मनाया गया कजलियां महोत्सव
सौंसारखेड़ा। बुंदेलखंड की सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक आस्थाओं से जुड़ा कजलियां (भुजरिया) का त्योहार रविवार को ग्राम सौंसारखेड़ा में पूरे हर्षोल्लास और श्रद्धा के साथ मनाया गया। यह त्योहार रक्षाबंधन के बाद फसल की उन्नति, खुशहाली और आपसी प्रेम के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
कजलियां, जिसे भुजरिया भी कहा जाता है, गेहूं या जौ के दानों को मिट्टी में बोकर उगाया जाता है और फिर निर्धारित दिन उन्हें पानी में विसर्जित किया जाता है। यह परंपरा न केवल फसल की अच्छी पैदावार की कामना से जुड़ी है, बल्कि आल्हा-ऊदल की वीरगाथा और महोबा की ऐतिहासिक घटनाओं से भी इसका गहरा संबंध है।
सौंसारखेड़ा में कजलियां महोत्सव का आयोजन वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार इस वर्ष भी मनीष जैन के निवास पर हुआ। यहां पूरे गांव के लोग एकत्रित होकर भुजलिया पत्तों के दोने में बोई गई कजलियां तोड़ते हैं और एक-दूसरे को आशीर्वाद स्वरूप भुजलिया भेंट करते हैं। खास बात यह है कि गांव के लोग इस अवसर पर उन परिवारों के घर भी जाते हैं जिनके किसी सदस्य का हाल ही में स्वर्गवास हुआ हो, ताकि उन्हें सांत्वना और सामाजिक सहयोग का संदेश दिया जा सके।
कार्यक्रम के दौरान ग्रामीणों में आपसी भाईचारा, सहयोग और उत्साह का विशेष माहौल देखने को मिला। महिलाएं और बच्चे पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर शामिल हुए, वहीं बुजुर्गों ने कजलियां की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता पर प्रकाश डाला। कजलियों का विसर्जन “कजली देवी” को विदाई देने और आने वाले दिनों में सुख-समृद्धि की कामना के साथ किया गया।
सौंसारखेड़ा में यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा, उत्साह और सामूहिक सहभागिता के साथ निभाई जा रही है, जितनी वर्षों पहले निभाई जाती थी। यह त्योहार न केवल कृषि से जुड़ा उत्सव है, बल्कि सामाजिक एकजुटता और सांस्कृतिक विरासत को संजोने का अद्भुत उदाहरण भी है।