🔥 सुशील केडिया और राज ठाकरे का माराठी विवाद: 30 साल मुंबई में रहने के बाद भी भाषा न सीखने पर टीका-टिप्पणी, MNS का जवाब-कार्यालय पर हमला
🗓️ घटना की समयरेखा
-
3 जुलाई 2025: शेयर मार्केट विश्लेषक सुशील केडिया ने X (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट किया, जिसमें उन्होंने लिखा कि “मैं 30 वर्ष से मुंबई में रहकर भी मराठी नहीं सीख पाया हूँ” और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे को चैलेंज किया कि अगर उन्हें ऐसा लगता है, तो उन्हें माराठी सिखाएं
-
4 जुलाई 2025: इसके बाद MNS कार्यकर्ताओं ने वर्ली स्थित उनके कार्यालय पर हमला किया, जिसमें पत्थर फेंके गए और “जय राज”, “मराठी मानुस” जैसे नारे लगाए गए
🕊️ सुशील केडिया का पक्ष
केडिया ने स्पष्ट किया कि उन्होंने मराठी सीखने से इंकार शब्दों की भावना से नहीं किया, बल्कि उन्होंने जनमानस का ध्यान भाषा-आधारित जबरदस्ती की ओर आकर्षित करने के लिए यह पोस्ट साझा किया । उन्होंने यह भी बताया कि इस विवाद के बाद उन्होंने पुलिस में सुरक्षा की अपील की और महसूस किया कि इस तरह की हिंसा और दबाव आम नागरिकों के लिए खतरनाक है ।
⚠️ MNS का जवाब और हमला
MNS के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने त्वरित रूप से कार्रवाई करते हुए वर्ली में ऑफिस पर पत्थरबाजी की — कुछ समर्थक “जय राज ठाकरे” जैसे नारों के साथ वहां पहुंचे । पार्टी के एक नेता सतीश देसपांडे ने कहा,
“अगर महाराष्ट्र में मराठी का अपमान करेंगे तो कान में थप्पड़ मिलेगा” ।
🌀 पुलिस और सुरक्षा की स्थिति
पुलिस ने बताया कि उन्होंने केडिया जैसे आम नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुरक्षा बढ़ाई है, लेकिन साथ ही ये घटनाएँ भाषा के आधार पर गैरकानूनी हिंसा की चेतावनी भी देती हैं ।
🙇♂️ माफी और नाटकीय वापसी
घातक हमले के बाद सुशील केडिया ने एक वीडियो जारी कर माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनका पोस्ट तनाव में हुआ और उन्हें उस समय उसका नज़रिया सही नहीं था। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि “30 साल में मैंने मराठी सीखी नहीं, इसका मतलब यह नहीं कि मैं मराठी का अपमान कर रहा हूँ” ।
📢 राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ
यह घटना व्यापक रूप से महाराष्ट्र में भाषाई अस्मिता और भाषावाद के मुद्दे पर बहस को फिर से हवा देती है। MNS और कई राजनीतिक पार्टियाँ मराठी भाषा के प्रति “गौरव” को दोहराती रही हैं, लेकिन इससे भाषाई आधार पर हिंसा और व्यक्तिगत हमले की नीति पर सवाल भी उठते हैं।
👉 आयोजित मंचों, सियासी बहसों और जनता की मानसिकता में भाषाई सम्मान बनाम मानवाधिकार का द्वंद्व साफ दिखता है।
🧭 निष्कर्ष: भाषा है संस्कृति या विवाद?
-
सुशील केडिया का विवाद हमें यह याद दिलाता है कि भाषा केवल पहचान नहीं बल्कि राजनीति और प्रभुत्व की एक शक्ति भी बन सकती है।
-
दूसरी ओर, यह घटना इस बात को रेखांकित करती है कि किसी की भाषा न जानना व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है, औ
